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जिसके जीवन में संयम है, सदाचार है और यौवन-सुरक्षा के नियमों का पालन है वह विद्यार्थी जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकता है, बड़े-बड़े कार्य उसके द्वारा संपन्न हो सकते है।

ब्रह्मचर्य शरीर का सम्राट है। ब्रह्मचर्य से बुद्धि, तेज और बल बढ़ता है। ब्रह्मचर्य से जीवन का सर्वांगीण विकास होता है। ब्रह्मचर्य जीवनदाता से मुलाकात कराने में सहायक होता है।

.....किन्तु आज के वातावरण में ब्रह्मचर्य का पालन कठिन होता जा रहा है। चारों ओर ब्रह्मचर्य का नाश करने के साधन सुलभ हैं। जीवन को तेजोहीन करने की सामग्रियाँ खुलेआम मिलती हैं।

लोग अश्लील नॉवेल (उपन्यास) पढ़ते है, अश्लील गीत सुनते है, चलचित्र देखते हैं, व्यसन करते हैं। इससे युवक के बल, बुद्धि, ओज-तेज और आयु का शीघ्र नाश हो जाता है और वह असमय ही वृद्धत्व का शिकार हो जाता है।





कुछ वर्षों पूर्व 'एक दूजे के लिए'इस नाम का एक सिनेमा देखकर कई युवक और युवतियों ने आत्महत्या कर ली। हालाँकि वह सिनेमा था, वास्तविकता नहीं थी। सिनेमा के नायक सचमुच में ऐसा नहीं करते, केवल अभिनय करके दिखाते हैं। फिर भी पढ़े लिखे कितने ही लोग आत्महत्या के शिकार हो गये। यह कैसी बेवकूफी है !



अश्लील उपन्यास, सिनेमा, गीत आदि मन को मलिन कर देते हैं। इसके फलस्वरूप तन भी कमजोर हो जाता है। कमजोर और दुर्बल पेट चाय-कॉफी पीने से वीर्य पतला होता है, स्नायु दुर्बल होते हैं एवं बुद्धिशक्ति कमजोर होती है। अतः इनसे भी बचना चाहिए। शराब, तम्बाकू आदि व्यसन भी जीवनशक्ति को कमजोर करके इन्सान को रोगी बना देते हैं।


जो व्यक्ति सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोता रहता है उसका भी ओज-तेज नष्ट हो जाता है।




हम लोग जब नीचे के केन्द्रों में अथवा विकारों में जीते हैं, मांस-मदिरा का सेवन करते हैं अथवा कोई हल्के काम करते हैं तो उस वक्त पता नहीं चलता, सब सुखद लगता है किन्तु उसका परिणाम बड़ा दुःखद होता है।

हल्के काम-धन्धे से, हलके वातावरण से, हल्का साहित्य पढ़ने से, हलके सिनेमा देखने से, हलके खान-पान से आदमी का पतन हो जाता है, ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है तो अच्छे कार्यों से, अच्छा साहित्य पढ़ने से, अच्छे विकार से, अच्छे एवं सात्त्विक खान-पान से आदमी का उत्थान भी तो हो सकता है।

प्रातः सूर्योदय से पूर्व उठने से, प्रतिदिन दस-बारह सूर्य नमस्कार व प्राणायाम करने से, प्रातःकाल की शुद्ध हवा लेने से, आसन करने से ब्रह्मचर्य की रक्षा होती है।

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